कश्तियाँ (Song)

साहिल पे जो है निगाहें

तो फिर क्या है ये धुआँ ?

फ़िजूल ही तो ढूंढे पनाहे

क्यूँ है तू यूँ उलझा हुआ ?

लहरों की सुनले जुबानी

अब तलक थी जो निहानी

हां थाम ले ये अर्ज़ानी...कश्तियाँ

ख्वाबों की कश्तियाँ...

उम्मीदों की कश्तियाँ ||धृ||

बूँद बूँद को है तरसी सुराही

उतार के लहरें इनमें, पी जा समंदर

खोल के अपनी दिखला गठरी

छुपा जो इक तूफ़ाँ है तेरे अंदर

कर जा जो तूने है ठानी

उजलेगी धूप सुहानी

चल पड़ी हैं ये बादबानी....कश्तियाँ

ख्वाबों की कश्तियाँ...उम्मीदों की कश्तियाँ ||१||

छू न पाएगा भँवर तुझे

आँखों को बस अपनी, पतवार बना ले

खुद ही लौट जाएंगी मौजें

इरादों की यूँ पैनी, धार बना ले

दो पल की है ये वीरानी

फिर डूब ही जाएगा पानी

देखकर ये आसमानी...कश्तियाँ

ख्वाबों की कश्तियाँ...उम्मीदों की कश्तियाँ ||२||

- विश्वजीत गुडधे

Composed & Sung by Mukund Suryawanshi

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